विंध्याचल कथा Vindhyachal Katha in Hindi
नमस्कार दोस्तों। क्या कभी ऐसा भी हो सकता है कि कोई पर्वत इतना ऊंचा हो जाए कि वह सूर्य के प्रकाश को धरती पर आने से रोक दे? क्या किसी पहाड़ की ऊंचाई इतनी भी हो सकती है कि वह चाँद और नक्षत्रों के घूमने को रोक दे?
जी हाँ, मैं शैलेंद्र भारती, आज आपको पद्म पुराण से एक ऐसी कथा सुना रहा हूँ। जिसमें एक पर्वत के अहंकार की बात की गई है और कैसे पर्वत को और बढ़ने से रोकने के लिए एक महान ऋषि को अपना स्थान बदलना पड़ा था। इस बात को भी मैं इस कथा में बताऊंगा।
हम बात कर रहे हैं विंध्याचल पर्वत की और उस ऋषि की जिन्होंने इस पर्वत को बढ़ने से रोका था। वो थे महान ऋषि अगस्त्य। तो आइए इस रोचक कथा को जरा सुनते हैं।
पौराणिक कथा में ऐसा कहा गया है कि सूर्य प्रतिदिन उदय और अस्त के समय स्वर्ण से युक्त महा पर्वत गिरिराज मेरू की परिक्रमा किया करते हैं। सूर्य ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि मेरू पर्वत पर सभी देवताओं का वास है।
हो सकता है कि परिक्रमा सांकेतिक हो। क्योंकि इसमें देवताओं के प्रति सम्मान का भाव है। पर कोई ऐसा था, जिसे सूर्य की इस परक्रमा से ईर्ष्या हो रही थी।
विंध्याचल एक महान पर्वत था। उसकी ऊंचाई भी आसमान छूती थी। मेरू पर्वत को देखकर उसमें ईर्ष्या आ गई। विंध्याचल एक दिन सूर्य से बोला, भास्कर जिस प्रकार आप प्रतिदिन मेरू पर्वत की परिक्रमा किया करते हैं। उसी प्रकार मेरी भी कीजिए।
बात थोड़ी अजीब थी। पर जब ईर्ष्या आ जाती है तो जरा लॉजिक छूट जाता है दोस्तों।
सूर्य ने विनम्रता के साथ विंद को समझाते हुए कहा – शैल मैं अपनी इच्छा से मेरू की परिक्रमा नहीं करता। जिन्होंने इस संसार की सृष्टि की है, उन विधाता ने ही मेरे लिए यह मार्ग नियत कर दिया है।
जब यह बात विंध्याचल को बताई तो उससे यह बर्दाश्त नहीं हुआ कि कोई पर्वत उससे भी ऊंचा या उससे भी अधिक सम्मानित हो सकता है। और इस तरह ईर्षा को क्रोध में बदलने में समय नहीं लगा।
विंध्याचल क्रोध से भर गया। उसने अपनी ऊंचाई को बढ़ाना आरंभ कर दिया। इतनी बढ़ाई, इतनी बढ़ाई अपनी ऊंचाई कि सूर्य तथा चंद्रमा का मार्ग तक रुक गया विंध्याचल के ऐसा करने से सृष्टि का संचालन रुक गया।
सूर्य और चंद्रमा के घूमने से ही सृष्टि चलती है। पर वे दोनों अपने मार्ग में रुक गए। क्योंकि उनके रास्ते में ऊंचा विंध्याचल आ गया था। पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश का आना रुक गया। त्राहि त्राहि मच गई।
पूरी सृष्टि का अंत होने का खतरा मंडराने लगा। तब इंद्र और बहुत सारे देवताओं ने आकर बढ़ते हुए गिरिराज विंध्याचल से रुकने के लिए विनती की। उन्होंने इस विनती को अस्वीकार कर दिया और अपना बढ़ना नहीं रोका।
हारकर मनुष्य इंद्र और बाकी के देवता महर्षि अगस्त के पास आए और उन्हें अपना दुखड़ा कह सुनाया। वे बोले – मुनीश्वर शैलराज विंद क्रोध के वशीभूत होकर सूर्य चंद्रमा तथा नक्षत्रों का मार्ग रोक रहा है। वह किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं है।
उन्होंने विनती की कि अति शीघ्र ही वह विंद पर्वत को अपना आकार घटाने के लिए कहे। यदि ऐसा ना किया गया तो सूर्य का प्रकाश ना पहुंच पाने की स्थिति में, विंध्याचल पर्वत की दूसरी ओर बसे मानवों पर भारी संकट आ जाएगा।
समस्या बड़ी गंभीर थी। सबकी बात सुनकर अगस्त्य मुनि विंध्याचल पर्वत के पास गए। अगस्त्य मुनि बहुत बड़े ऋषि थे। ऐसा कोई नहीं था जो उनका सम्मान नहीं करता था।
जैसे ही ऋषि अगस्त्य आए तो उन्हें देखते ही विंध्याचल पर्वत ने झुककर उन्हें प्रणाम किया। प्रणाम करने के बाद विंध्याचल ने पूछा कि वह उनकी कैसे सेवा कर सकता है?
तब अगस्त्य मुनि बोले कि उन्हें दक्षिण की ओर जाना है। लेकिन विंध्याचल के इस बड़े हुए आकार के कारण वह पार कैसे जाएंगे? विंध्याचल इतने बड़े गुरु का रास्ता तो नहीं रोक सकता था।
एकदम से बोला – यदि उन्हें उसको पार कर दक्षिण दिशा की ओर जाना है। तो वह अपना आकार घटा लेगा और ऋषि अगस्त्य आसानी से जा सकेंगे। जब एक पार से दूसरी ओर जाएंगे तो स्वाभाविक है कि लौटकर वापस भी आएंगे।
उस समय विंध्याचल को फिर से अपना आकार घटाना पड़ेगा। इसी का सलूशन देते हुए ऋषि अगस्त्य बोले कि मैं उस पार तो जा रहा हूँ पर जब तक मैं वापस ना आऊ तुम अपना आकार मत बढ़ाना और ऐसे ही झुके रहना।
विंध्याचल ऋषि की बात मान गया। अगस्त दक्षिण की ओर चले गए लेकिन फिर कभी नहीं लौटे। कहते हैं कि यही विंध पर्वत आज तक अपने गुरु के आदेश पर झुके हुए उनके लौटने की राह देख रहा है।
इस विंध पर्वत क्षेत्र का महत्व तपो भूमि के रूप में वर्णित है। यहीं पर मां विंध वासिनी का एक जागृत शक्ति पीठ भी है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस विंध्याचल का अस्तित्व रहेगा।
तो यह थी वह कथा दोस्तों जिसमें एक पर्वत की ऊंचाई को रोकना आवश्यक हो गया था। हजारों साल पुरानी इस कथा में जियोग्राफी है, इसमें एस्ट्रोनॉमी है, और धार्मिक और आध्यात्मिक आस्थाएं तो हैं ही।
इसी कारण से दोस्तों, यदि किसी महान व्यक्ति को अपने पर घमंड हो जाए तो उसे झुकना भी पड़ता है। दुनिया में सबसे आवश्यक होता है आम लोगों का भला। इसी भले के लिए ऋषि अगस्त जो एक बार दक्षिण दिशा की ओर गए। तो वापस लौट कर के कभी भी नहीं आए।
इसी भलाई के लिए ऊंचे और महान विंध्याचल को झुकाना पड़ा। और वह आज भी झुका हुआ है। और खड़ा हुआ है। इसी बात के साथ दोस्तों मैं शैलेंद्र भारती आपसे यही कहूंगा कि अपने आप को विनम्रता के साथ में झुकाए रखिए।
धन्यवाद
कथावाचक: शैलेंद्र भारती, ट्रेडिशनल
Vindhyacahl Katha Story Credits
“Vindhyachal Katha,” Shailendra Bharti द्वारा सुनाई गई, Padma Puran की एक रोचक कहानी है। यह Vindhyachal mountain के बारे में है, जो Mount Meru से ईर्ष्या करके इतना ऊँचा हो गया कि उसने सूरज और चाँद का रास्ता रोक दिया। इससे पूरी सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया। तब ऋषि Agastya ने हस्तक्षेप किया और Vindhyachal से अपना आकार छोटा करने को कहा ताकि वह दक्षिण दिशा में जा सकें। Vindhyachal ने झुककर उनकी बात मान ली, लेकिन ऋषि Agastya कभी लौटे नहीं। यह कहानी geography, astronomy, और spiritual lessons से भरी हुई है और हमें अहंकार छोड़कर विनम्रता और सभी के भले के बारे में सिखाती है।
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